कुछ और ही होता
चमन का नज़ारा
अगर,
गुल ये जान जाते,
तितलियाँ और भ्रमर,
आते नहीं रंग-ओ-बू के लिये,
मकरंद का रस है,
उनके आने की वजह।
हाँ मगर,
यह छोटा सा मिलन भी,
स्वार्थ के कारण ही सही,
देके जाता है ,
चमन को ,
दास्ताँ हर बार एक नई।
और चलती है,
प्रकृति
सर्जन के,
इस बेदर्द वाकये,
के भरोसे!
फ़ूल का खिलना हो,
या भ्रमर का गुंजन,
जारी है निरंतर,
और,
चमन गुलज़ार है,
दर्द से भरी
पर हसीं
दास्तानो से!